इन दिनों व्हाट्सएप और फेसबुक काफी प्रचलन में है। हर कोई फेसबुक पर और व्हाट्सएप्प पर पोस्ट्स पढ़ना व अपने मित्रों के साथ शेयर करना पसंद करते है। पर क्या आप कभी सोचते हैं की जो पोस्ट्स आप पढ़ रहे हैं और शेयर कर रहे हैं उनके पीछे कितना सत्य छिपा है।
ये देखा गया है की आम तौर पर जो भी लोग फेसबुक पर या व्हाट्सएप् पर देखते हैं उसे बिना जांचे या परखे ही सत्य मान लेते हैं और बे वजह अपने जीवन मे परिवर्तन लाने लगते हैं। उदाहरण के तौर पर, कुछ ही दिनों पहले की बात है, मेरी माता जी ने मुझसे बोला की आज मेरे पास एक पोस्ट आया है और उसमें लिखा है कि जिस साबुन का हम उपयोग करते हैं उसमे सुअर व गाए की चरबी मिली होती है और आगे से हम उसका उपयोग बंद करदेंगे। पर उसके बाद जो उन्होंने ने कहा, उससे मुझे आश्चर्य हुआ। उन्होने कहा कि उस पोस्ट में एक दूसरे साबुन का नाम लिखा है जो कि हम उपयोग में ले सकते हैं और उसमें किसी जानवर की चरबी नहीं है।
उनकी इस बात ने मुझसे विचार करने पर विवश कर दिया की ये पोस्ट जानकारी देने के माध्यम से लिखा गया है या फिर एक साबुन को बदनाम कर दूसरे को बढ़ावा देने की कोशिश? क्या इसके पीछे कोई सत्य छिपा है या फिर ये मात्र लोगो को भ्रमित करने के उद्देश्य से लिखा गया है।
मैंने कुछ दिन तो ये सोचते हुए व्यतीत कर दिये कि कोई बात नही, कौनसा वो साबुन मैंने बनाया है, क्या फर्क पड़ता है। पर मुझे दोबारा अगले दिन एक और आश्चर्य जनक पोस्ट देखने को मिला जिसमे लिखा था कि एक मशहूर नमकीन में उसको बनाने वाली कंपनी उसमें प्लास्टिक मिलाती है ताकि वो उस नमकीन को और भी ज़्यादा “कुरकुरा” ? बना सके। मैं आप लोगों से पूछता हूँ, भला ये कैसे मुमकिन है की सरकार और उसके अधिकारी इस तरह की चीज़ बाज़ारों में बिक्री के लिए आने देंगे?
अब श्यायद मैं झेल नही पाया या मैं अपनी आदत से मजबूर था, मगर अब मैंने सत्य जानने का प्रयास करना शुरू कर दिया। पहले मैंने इंटरनेट पर खोज की, जहाँ मुझे और ऐसे ही फ़र्ज़ी पोस्ट्स मिले। हार मान कर मैंने सीधा कम्पनी ही कॉल लगा दिया और सीधा पूछा कि इन बातों में कितनी सच्चाई है। कंपनियों ने मुझे हर बार संतोष जनक जवाब देते हुए यह ही कहा कि सब प्रतियोगी कंपनियों के बदनामी करने के तरीके हैं साथ ही ये भी कहा कि मैं जब चाहू बाज़ार से उनका सामान खरीद कर उसकी जांच करवा सकता हूँ। एक कंपनी ने तो ये तक कहा कि आप हमें अपना पता दीजिये और हम खुद आपको सरकारी जांच की प्रति उपलब्ध करवा देंगे।
ज़रा सोचिए, कंपनियों के खुद सबूत देने की तैयारी में है इस से ये ही साबित होता है कि वो पोस्ट्स मात्र उन कंपनियों को बदनाम करने का व खुद की कंपनी को बढ़ावा देने का एक तरीका था।
इससे यह ही बड़ा सवाल उठता है की क्या हम फेसबुक या व्हाट्सएप्प पर जो भी पढ़ते हैं, देखते है, वो सत्य के कितना नज़दीक है। जिस प्रकार से कही सुनी बातों को सत्य मान लेना गलत है, बिलकुल उसी तरह सोशल मीडिया पर दिखने वाली हर चीज़ को सत्य मान लेना उतनी ही बड़ी बेवकूफी है।
गलत चीज़ को पढ़ कर, उस पर यकीन कर के उसे आगे शेयर करना ना केवल गलत है बल्कि कल को कंपनी आप पर मान हानि का दावा भी कर सकती है। यह कहना गलत नही है कि सोशल मीडिया एक ताक़तवर ज़रिया है जिससे हम अपनी बात दूनिया तक पहुंचा सकते हैं, लेकिन उसका इस तरह से गलत इस्तेमाल करना व इस तरह के पोस्ट को शेयर कर गलत इस्तेमाल का भागीदार बनना गलत है।
मेरी अपने सभी पाठकों से यह ही गुज़ारिश है कि फेसबूक व व्हाट्सएप्प पर दिखने वाली हर बात को सत्य मान कर शेयर ना करें, उसका सत्य जाने और पुष्टि करने पर ही उसे शेयर करें। और अगर कुछ शेयर करना चाहें तो इस ब्लॉग को शेयर करें।
धन्यवाद, ऐसे ही आर्टिकल के साथ दोबारा लौटूंगा तब तक Enjoy..!