ज्ञान

सर्वोपरि क्षत्र है, सहस्त्र कोटि लिप्त ज्ञान।

अंतहीन अविरत है, संसार से बृहदद ज्ञान।

सुगम प्राप्ति निषेध है, करुणापूर्वक अनुसंधान ज्ञान।

काल विसंगत अनाश्रित है, विषिष्ट आचरण चित्र ज्ञान।

चार कदम – based on a true story

A few days back, I, with my teammates planned to visit Govardhan for a holy visit. We walked around the mountain (परिक्रमा). It was fun filled but tiring barefoot 23 Kms walk, it challenged our will but we tried out best to over come the fear and finished it.

चार कदम चल दिए, सोचा अब पर्वत पार है

चार कदम और चले तो लगा कोशिश अब बेकार है

चार कदम का फैसला है, चार और चल दिए

चार चार कदम से सौ कदम पूरे कर दिये

चार कदम की कोशिश से ज्ञान बड़ा साफ़ हुआ

चार चार कदम जोड़ कर ही पर्वत पूरा पार हुआ

Facing the challanges of life

हर रोज़ की चुनौतियों से लड़ना पसंद करता हूँ, मैं सूर्य हूँ आसमाँ का, मैं बढ़ना पसंद करता हूँ।

न रोक सकी ये बंदिशें, न रोक सका ज़माना, न रोक सके दुनिया के लोग, अब लिख रहा हूँ ये फसाना।

हर रोज़ की चुनौतियों से लड़ना पसंद करता हूँ, मैं मशाल की एक लौ हूँ, मैं उठना पसंद करता हूँ।

न हाथों में हतकडियाँ हैं न पाँव में हैं बेडिया, न बंद दरवाजों के पीछे हूँ, न कोठरी में मैं जिया

न रोक पायेगा मज़हब न रोक सकेगा कोई इंसान, मुक़द्दर का ग़ुलाम नहीं मैं, न मैं लेता झूँठा सलाम,

न रोक पाएंगे चाँद सितारे, न रोक सकें सोच के दाएरे, आवाम के शोर का टहलुआ नहीं मैं, बस मानु अपना कलाम

न रोको मुझे, क्योंकि मैं चलना पसंद करता हूँ, हर रोज़ की चुनौतियों से लड़ना पसंद करता हूँ, मैं बेल की एक शाख़ हूँ, में चढ़ना पसंद करता हूँ।

दिन से, पहाडों से, नदी के अटूट बहाव से, समुद्री तेज़ लहरों से, हर रोज़ शाम सवेरो से, यही सीख हर दम लेता हूँ

कि हर रोज़ की चुनौतियों से लड़ना पसंद करता हूँ, मैं तूफानी बुलंद जहाज़ हूँ, मैं लड़ना पसंद करता हूँ।

न ख़्वाबों पर हों बंदिशें न डर डर के हम जियें, न ज़माने की फिक्र हो, क्यों कड़वे घूंट हम पियें

सोचते थे जब दुनिया की, मिले थे तो बस ग़म और सितम, अब सोच कर हँस देता हूँ कि ऐसे क्यों जिये हम।

भेड़ चाल चल दिये, की नही थी बस ख़्वाइशें, गिले किये शिक़वे किये, की नही थी बस कोशिशें, लेकिन अब ख़्वाइशें और कोशिशें करना पसंद करता हूँ

क्योंकि हर रोज़ की चुनौतियों से लड़ना पसंद करता हूँ, मैं बाज़ हूँ तेज़ हवाओं का, मैं उड़ना पसंद करता हूँ।

महरूम था आज़ादी से, तो महरूम था खुशी से, महरूम था जो अपनी ज़िद्द से, तो महरूम था अपनी ज़िंदगी से

अब ज़िन्दगी पूरी जीनी है, हर ज़िद्द अब पूरी करनी है, अब कोशिश पूरी करनी है, पूरी आजादी रखनी है

महरूम रहने की फितरत अब छोड़ चुका हुँ

क्योंकि हर रोज़ की चुनौतियों से लड़ना पसंद करता हूँ, मैं आज़ाद शेर हूँ खुले जंगलों का, मैं दहाड़ना पसंद करता हुँ।

समय के अटल बहाव सा, जो न रुक सके उस सैलाब सा, मलंग सा, पतंग सा, खुशी से रहूँ दंग सा, मैं बलशाली मैं बुद्धिमान, न घटने दू कभी अपनी शान

सब्र अब नही है, नही है अब इंतज़ार, नही घेरेंगे अब ग़म के बादल, नही होगा अब मन बेकरार

चलना नहीं चाहता हूँ, अब चीर कर निकल जाना है, पार करनी है हर मुश्किल अब बिजली सा बन जाना है।

सोच लिया जो अब कर दिखाता हूँ।

क्योंकि हर रोज़ की चुनौतियों से लड़ना पसंद करता हूँ, मैं रुद्र हूँ इरादों का, मैं इरादों को असलियत में, सोच को सच में, ख़्वाबों को हक़ीक़त में, मंसूबों को कार्य में बदलना पसंद करता हूँ।

वाट्स एप्प और फेसबुक पर आने वाले पोस्ट्स का सत्य जानिए

इन दिनों व्हाट्सएप और फेसबुक काफी प्रचलन में है। हर कोई फेसबुक पर और व्हाट्सएप्प पर पोस्ट्स पढ़ना व अपने मित्रों के साथ शेयर करना पसंद करते है। पर क्या आप कभी सोचते हैं की जो पोस्ट्स आप पढ़ रहे हैं और शेयर कर रहे हैं उनके पीछे कितना सत्य छिपा है।

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Priorities in a relationship

Majority of us take our parents for granted, we know they are not going to go away from us even if we take them for granted.

But what would you do if your father calls you in the middle of an important call… and his call goes waiting.. what would you do?

A few would first attend the important call and call their father just after and an other few would just simply ask the person on important call to hold for a while (He is father after all.. ;))

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